कर्णप्रयाग, प्रसिद्ध पंच प्रयागों में तीसरा व सबसे महत्वपूर्ण                   

                स्वागत है आपका दोबारा मेरे नये ब्लॉग पर जिसमें मैं आपको आज कर्णप्रयाग के बारे में बताऊंगा। जैसा कि आप सभी जानते ही होंगे कि प्रयाग किसे कहते हैं, अगर नहीं जानते तो चलो मैं आपको बता देता हूँ। प्रयाग मतलब संगम, ऐसी जगह जहाँ दो  या अधिक चीजों का मिलन या संगम होता है उसे प्रयाग कहा जाता है। तो कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी और पिंडर नदी का संगम होता है और ये हिंदू धर्म में  पांच प्रयाग में तीसरे नंबर पर आता है और क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाये तो ये उन पांचों में सबसे बड़ा है । पिंडर नदी का एक नाम कर्ण गंगा भी है जिसके कारण ही इस तीर्थ स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा। अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम में बसा ये शहर काफी खूबसूरत है।  कर्णप्रयाग उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में एक नगर पालिका बोर्ड है और उत्तराखंड में धार्मिक स्थानों में से एक है।


KARNPRAYAG, UTTRAKHAND 





अलकनंदा नदी और पिंडर नदी का संगम

कर्णप्रयाग का इतिहास -

कर्णप्रयाग पंच प्रयागों में से तीसरा है और सबसे महत्वपूर्ण हुआ करता था। क्योंकि बद्रीनाथ धाम को जाने वाले ऋषि मुनियों, बाबाओं , तीर्थ यात्रियों को कर्णप्रयाग से ही होकर गुजरना पड़ता था। इसीलिए पुराने समय में ये एक काफी उन्नतिशील मतलब advance बाजार हुआ करता था। देश के दूसरे हिस्सों से लोग यहाँ बसने आ गए थे क्योंकि यहाँ व्यापार के बहुत अवसर उपलब्ध थे।  पर 1803 में बिरेही बांध टूट जाने से आयी बाढ़ से यहाँ काफी नुकसान हुआ और इन व्यापारिक गतिविधियों पर भी रोक लग गयी। उस समय प्राचीन उमा देवी मंदिर को भी काफी नुकसान पंहुचा था। फिर जब कुछ समय बाद हालत सामान्य होने लगे तो कर्णप्रयाग फिर से बसने लगा। 

कर्णप्रयाग के पुल का दिन में फोटो 

कर्णप्रयाग के पुल का रात में फोटो 



SANGAM 


कर्णप्रयाग की पौराणिक कथाएं-

कर्णप्रयाग के नाम और स्थान के ऊपर एक नहीं कई सारी पौराणिक कहानियां हैं, जिसमे से मैं कुछ कहानियां आपके साथ share करना चाहता हूँ , मतलब आपको पढ़ाना चाहता हूँ।  

1 . किंबदंती के अनुसार कर्णप्रयाग का नाम दानवीर कर्ण पर रखा गया था जो महाभारत का एक बहुत प्रामुख पात्र भी था, और आप लोगो ने जरूर महाभारत पढ़ी भी होगी और ये भी जानते होंगे की कर्ण ने कुंती के गर्भ से जन्म लिया था और पांडवों का बड़ा भाई था। 

2. एक पौराणिक कहानी के अनुसार पुराने समय में दानवीर कर्ण ने इसी पवित्र संगम स्थल में  उमा देवी की शरण में रह कर सूर्य भगवान की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अभेद्य कवच और कुंडल दिए थे। 

3.  एक और पौराणिक कहानी के अनुसार जिस स्थान पर आज कर्ण का मंदिर है वो पहले कभी पानी के अंदर था और बस उसका एक नुकीला भाग पानी से बाहर दिखता था।  कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद भगवन कृष्णा ने कर्ण का दाह संस्कार यहीं किया था। इसलिए इस स्थान पर स्नान करने के बाद दान करना और यहीं पर पितरों को तर्पण देना भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। 

4. एक और कहानी के अनुसार भगवान शिव के अपमान किये जाने के बाद जब माता पार्वती ने अग्नि कुंड में कूद गयी थी तो उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में अपना दूसरा जन्म उमा देवी के रूप में लिया था, और भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या भी की थी, और इसी स्थान पर माँ उमा देवी का प्राचीन मंदिर भी कर्णप्रयाग में स्तिथ है। 

कर्ण मंदिर 


कर्णप्रयाग की संस्कृति और सभ्यता -

कर्णप्रयाग की सभ्यता उत्तराखंड के सबसे पुराने और अद्भुत नंदा राज जात यात्रा (nanda raaj jaat yatra) से जुडी हुई हैं। कर्णप्रयाग नंदा देवी की पौराणिक कहानी से भी जुड़ा है और नौटी गांव (noti gaon) जहाँ से ये नंदा राज जात यात्रा शुरू होती है वो भी कर्णप्रयाग से मात्र 20 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ है। 

अलकनंदा नदी 

पिंडर नदी 


कर्णप्रयाग में बोलचाल व भाषा -

यहाँ पर आम तौर पर गढ़वाली और हिंदी भाषा ही बोली जाती है, पर फिर भी यहाँ कई लोग अंग्रेजी व अन्य भाषाएं भी बोल लेते हैं। 



कर्णप्रयाग कैसे पहुँचे -

सड़क द्वारा - कर्णप्रयाग पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे आसान और सुविधा जनक मार्ग है, आप देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार से टैक्सी लेकर भी आ सकते हैं। या देश के किसी भी कोने से सड़ाकर द्वारा आप आराम से कर्णप्रयाग पहुंच सकते हैं। 

रेल द्वारा-   अभी तक कर्णप्रयाग पहुंचने के लिए सबसे पास का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 200 km दूर ही है, पर भारत सरकार द्वारा ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल लाइन rishikesh karnprayag rail line बिछाने का काम शुरू कर दिया गया है जिससे जल्द ही हमे कर्णप्रयाग तक रेल से जाने की सुविधा मिल सकेगी। 

हवाई जहाज द्वारा- कर्णप्रयाग पहुंचने के लिए सबसे पास का एयरपोर्ट देहरादून में जॉलीग्रांट हवाई अड्डा ही है, जहाँ से आसानी से टैक्सी करके कर्णप्रयाग पंहुचा जा सकता है। 

कर्णप्रयाग में रात का नज़ारा 


कर्णप्रयाग कब जाएँ- 

वैसे तो कर्णप्रयाग अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम में बसा शांत शहर है जहाँ न बहुत ज्यादा गर्मी है और न बहुत ज्यादा ठण्ड, पर फिर भी जून के आखिर से लेकर सितम्बर तक बरसात के मौसम में ना जाएँ तो बेहतर होगा, क्योकि बरसात के मौसम में भूस्खलन के वजह से पहाड़ो में ज्यादातर सड़कें टूट जाती हैं। 


कर्णप्रयाग को ड्रोन(DRONE VIDEO)से देखने के लिए इस लिंक पे क्लिक करें - कर्णप्रयाग की ड्रोन की वीडियो 




और आखिर में -

मैं आशा करता हूँ की आपको मेरा ये ब्लॉग काफी पसंद आया होगा, अगर आपके मन में कोई सवाल है कर्णप्रयाग को लेकर तो आप नीचे  comment  box  में जाके अपने सवाल कर सकते हैं जिनका जवाब मैं जल्द से जल्द देने की कोशिश करूँगा।  मेरे और ब्लॉग पढ़ने क लिए बने रहिये मेरे साथ। और मैं मिलूंगा आपको जल्द ही एक नए ब्लॉग के साथ जिसमे मैं आपको एक और नई जगह की पूरी जानकरी दे सकूंगा। 


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